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Jyotsana Singh

                 सपने सच होते हैं।
स्वप्न को हकीकत में तब्दील होते हुए देखना बेहद सुखद होता है। ‘‘अविरलधारा’’ एक ऐसा ही स्वप्न बनकर साहित्यिक पत्रिका के रूप में साकार हुआ है। साहित्य समाज का दर्पण है यह तो हम बीते वक्त से सुनते चले आ रहे हैं। ‘‘अविरलधारा’’ पत्रिका का दर्पण थोड़ा और पारदर्शी है। यह पत्रिका अपने आप में साहित्य और समाज के साथ ही साथ समाचार, धर्म और स्वाद को भी अपने भीतर समेटे हुए है।

और Close एक डिज़िटल पत्रिका है। आज हमारा पूरा जीवन नेट के तार-तार से जुड़ा हुआ है। जिस तरह से हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह से तेजी से होते इस डिज़िटलीकरण के भी दो पहलू हैं और हम भी उन दोनों पहलुओं से अलग नहीं हैं। फिर भी हम खुद को विशेष बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे। यह ‘‘टीम अविरलधारा’’ का आप से वादा है।
आज समाज में लिखा बहुत जा रहा है। उसे लोगों तक पहुँचाने के रास्ते भी सुगम हुए हैं किंतु हर प्लेटफॉर्म पर हमारी लेखनी कितनी सुरक्षित है, यह प्रश्न बहुत बड़ा है। हम आपके लेखन के सुरक्षित होने का दावा तो नहीं करते किंतु हमारी पूरी ‘‘टीम अविरलधारा’’ यह हलफ़ जरूर उठाती हैं कि आपका लेखन यहाँ सुरक्षित रहेगा। 
हमने दो स्तंभ ‘नई कलम’ और ‘नन्हीं क़लम’ के नाम से भी पत्रिका में समाहित किए हैं। यह हमारे उन क़लमकारों के लिए हैं जिन्होंने अपने मनोभावों को शब्दों का जामा पहनना अभी शुरू ही किया है। उन्हें हम प्रकाशित होने का स्थान देंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा उनको पढ़ा जा सके, उनके हृदय में उठते भावों को समझा जा सके। यदि नई क़लम स्वयं इजाज़त देगी तो उसके काव्यगत या कथागत भावों को काव्य और कथा की कसौटी पर कसकर उसकी लेखनी को हमारे अनुभवी क़लमकार परिष्कृत भी करवा सकते हैं।
लेखन कार्य एक दुरुह कार्य होते हुए भी बेहद सुकून भरा काम होता है। किसी भी रचना का जन्म होता ही तब है जब वह लेखक के हृदय के तारों को झंकृत करके उसे विवश  करती है कि वह अपने शब्दों की माला को विचारों के माध्यम से वरण करे। इस सुंदर समागम से ही लेखनी चलती है। अविरलधारा की संपादक होने के नाते मैं माँ शारदे से विनय करती हूँ कि वह पत्रिका में आने वाली हर कलम पर अपना वरदहस्त् रखें। नन्हीं कलम को हम बिल्कुल वैसा ही रखना चाहते हैं जैसा हमारे बाल कलाकार हमको भेजेंगे। बच्चे हमारा भविष्य होते हैं और हम अपने भविष्य को उनके देखे स्वप्न में स्वच्छंद विचरने देंगे। बच्चे पत्रिका में स्वयं की लिखी कविता, कहानी या चित्र कुछ भी भेंजें उनका खुले दिल से स्वागत है।
प्रमुख रूप से हरदोई शहर के व्यापक साहित्यिक समाज के लिए यह पत्रिका, टीम ‘‘अविरलधारा’’ ने अपना कीमती वक्त देकर तैयार की है। वैसे तो इसमें सभी साहित्यिक मित्रों का स्वागत है। पत्रिका का उद्गम शहर हरदोई का होने की वजह से हम हरदोई के साहित्यकारों का सहयोग विशेष रूप से चाहेंगे। यह आपकी अपनी पत्रिका है। आपके शहर की 

रौशनाई है अतः आपके सहयोग के बिना इस कली को कुसुम बनने में बहुत वक्त लग जाएगा। 
आपका सहयोग रहा तो यह पत्रिका जल्दी ही विकसित पत्रिकाओं की श्रेणी में अपना स्थान बना लेगी, ऐसा हमारा विश्वास है। एक बात और हम वक्त-वक्त पर साहित्यिक गोष्ठियाँ करते रहेंगें। उन गोष्ठियों में हम पत्रिका में शामिल रचनाकारों को मंच देने का भी वादा करते हैं।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि सभी का जीवन इन्द्रधनुषी हों। स्वस्थ रहिए मस्त रहिए। सुंदर लिखिए और खूब पढ़िए क्योंकि पढ़ेंगे आप तभी तो रचेंगे आप।
अविरलधारा एक टीम के रूप में कार्य करती है। इसके सभी कार्यकर्ता अवैतनिक हैं। हम सबने जो सपना देखा उसे पूरा करने के लिए हम तन-मन और धन से समर्पित हैं।
टीम अविरलधारा के पदाधिकरियों की सूची निम्न है।
1.    ज्योत्सना सिंह (प्रधान-संपादक)
2.    श्रीया शर्मा (मुख्य कार्यकारी एवं प्रभारी समाचार प्रभाग)
3.    दीपा शर्मा (संयोजिका)
4.    सुन्दरम पाण्डेय (आई0टी0 विश्लेषक  एवं मुख्य तकनीकी अधिकारी)
5.    मनोज कुमार शर्मा (संस्थापक)
हम अभार व्यक्त करते हैं ‘जोविएल डिज़िटल सर्विसेस’ नोएडा के मुख्य तकनीकी अधिकारी श्री सुंदरम पाण्डेय जी का जिनके मार्गदर्शन में उनकी पूरी टीम ने इस पत्रिका के डिज़िटलीकरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है।
आपके सहयोग की आकांक्षी आपकी अपनी संपादक
ज्योत्सना सिंह
ओमेक्स,गोमती नगर लखनऊ।

 साहित्यिक परिचय
 नाम-ज्योत्सना सिंह
जन्म-06-02-1969
माता-स्वर्गीय श्रीमती कमला सिंह
पता-स्वर्गीय श्री अनिरूद्ध बहादुर सिंह
शिक्षा-परा स्नातक हिन्दी साहित्य 
मो०न०-8354016004
सम्मानः शारदेय सम्मान, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच से काव्य अमृत सम्मान, के.जी.साहित्य सम्मान से सारथी सम्मान, lcww कहानी प्रतियोगिता में2023और2024दोनों ही बार प्रथम पुरस्कार।
अखिल भारतीय उत्थान परिषद सम्मान से साहित्य श्री सम्मान।
साहित्यिक परिचय-‘‘सारंग’’नाम से लघुकथा संग्रह प्रकाशित। 
अहा! जिंदगी, दैनिक जागरण, नवभारत टाईम्स,अमर उजाला, रूपायन,कथा क्रम,वनिता,HPS 
पत्रिका,सोच-विचार,विभोस-स्वर,गौतमी,कलमकार मंच और बाल पत्रिका चिरैया एवं देवपुत्र आदि कई पत्र-पत्रिकाओं में कई बार रचनाओं का प्रकाशन। 
पिट्स बर्ग अमेरिका की ई-पत्रिका सेतु में अनेकों बार रचना प्रकाशित,रचनाकार मंच,अभिव्यक्त

प्रकाशन, जनखबर लाइव, आदि कई पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन 
पुस्तकों तथा पत्रिका के उपसंपादन का कार्य
रेडियो अमेरिका से तीन लघुकथाओं का प्रसारण
इंडिया वाॅच चैनल पर काव्य पाठ।
AIR FM  बरेली AIR लखनऊ से लघुकथा तथा चार बार कहानी पाठ। गाथा मंच पर कथा पाठ।
दूरदर्शन लखनऊ से इंटरव्यू प्रसारित।
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142 दिन पहले 10-May-2024 3:14 PM

Jyotsana Singh

              सन्यासिनी
स्वाहा! स्वाहा! स्वाहा! की ध्वनि प्रतिध्वनि उसकी कुटिया से आती हुई बाहर के माहौल को भक्तिमय कर रही हो ऐसा तो नहीं था। क्योंकि वो जगह भक्ति के लिए उपयुक्त ही नहीं थी। वह तो जीवन के अटल सत्य को दर्शाने  वाला स्थान था। शमशान  के भीतर थी उसकी कुटिया और वह थी 'शमशान की सन्यासिनी' पूरे माहौल में चमड़ी के जलने से आने वाली गंध के साथ उसकी मदिरा की दुर्गन्ध ने वातावरण को वीभत्स सा बना रखा था। हर आने वाली लाश के परिजनों को उसे भेंट चढ़ानी होती थी, नहीं तो यहाँ से जाने वाला हर आदमी परेशान रहता है, ऐसा मिथक फैला रखा था उसने और शमशान के कर्मचारियों ने। 

और Close कपड़े का एक लम्बा झिंगोला जैसा वस्त्र काले घने लंबे बाल और चेहरे पर काले ही रंग का लेप उसकी छवि को डरावना सा बनाते थे। उसकी आँखें शराब के नशे  में यूँ लाल रहती जैसे दो दहकते हुए कोयले के अंगार जिसको देखने मात्र से उसके अंदर की आग की दहक का पता चलता था। जितनी क्रूरता और कठोरता वह अपने व्यक्तित्व में ला सकती थी, वह सब उसने अपने में समाहित किया हुआ था। बरसों से वक्त मौसम या माहौल कुछ भी रहा हो पर सन्यासिनी ने अपनी पूजा में कोई भी विघ्न नहीं आने दिया था। शमशान के लोग जानते थे कि वह  कोई सिद्धि प्राप्त करना चाहती है, जिसकी वजह से वह  शमशान की देवी का हवन और अर्चना रात्रि भर करती है। भोर में  शमशान आने वाली पहली अर्थी के दर्शन  करके ही वह  मधुपान करती है।
आज भी वह अपनी दिनचर्या में व्यस्त थी। हवन करके शमशान की सीढ़ियों से उतरती हुई पहली अर्थी के दर्शन करने को वह पास आई ही थी कि उसके पाँव ठिठक गये। इतने सालों में आज पहली बार हुआ कि वह किसी अर्थी को देखकर विचलित हुई हो।
ये क्या मधु दीदी! पूरे सोलह श्रृंगार के साथ दुनिया से विदा हो गई। अभी भी गले में वही मोहर पहने है। एक पल को ठिठके अपने कदमों को उसने बड़ी कठोरता से संभाला और अपने नजराने के तौर पर गले से वो मोहर उतारने लगी कि एक किशोर की मधुर वाणी ने उसे रोकते हुए कहा-" आप ये न उतारें मेरी अम्मा की प्रबल इच्छा थी की वह चिता पर इसे पहन कर ही जलें। आपको इसके बदले में और जो चाहिए बता दीजिए मैं दे दूँगा-"।  उसने उस नवयुवक को नजर भरकर देखा और दिल को कठोर कर बोली-" हम यही लेंगे,नहीं तो मेरी पूजा और तेरी ये चिता दोनों की आग में दहक पूरी न होगी"। नवयुवक ने सहमें हुए शब्दों में कहा-" मैंने अपनी अम्मा को वचन दिया था। वह कहती थीं इसमें उनकी जान बसती है"। उसे बीच में ही फटकारते हुए वह बोली-" हाँ, तो जब जान ही न रही तब इसका क्या"?
इतना कहकर सन्यासिनी ने अब तक के रुके हुए हाथ को आगे बढ़ाया ही था कि नवयुवक घुटनों पर बैठ उसके आगे हाथ जोड़ कर विनती करने लगा-" मुझे  मेरी अम्मा को दिया वचन पूरा कर लेने दीजिए"। उसके निर्दोष मुखड़े को देखकर वह एक पल को फिर विचलित हुई कठोरता से उसने लाश के गले से वो मोहर उतार ली। ये देख किशोर बिलख उठा, परिजन उसे कुछ समझाते कि सन्यासिनी ने मोहर वापस रख लाश के माथे को चूम लिया और अपनी कुटिया की तरफ तेजी से बढ़ गई। शराब की गंध और चमड़ी जलने की दुर्गंध से पूरे वातावरण में जुगुप्सा का माहौल था। लकड़ियों से चिता सजाई जा रही थी।
अपनी कुटिया में आकर वह मधुपान करने लगी। वह जितनी भी शराब पीती उसकी व्याकुलता
उतनी ही बढ़ती जाती। आज वह खुद को नशे में धुत्त कर देना चाह रही थी। पर नशा था की उस पर असर ही न कर रहा था। वह अपने पूरे होशो -हवास में बीस साल पीछे की जिन्दगी 
के पन्नों को अपने समक्ष फड़फड़ाते हुए देख रही थी। गोरा चिट्टा रंग सुकोमल सुंदर काया 
घने लंबे बाल और गोल-गोल मुखड़े पर बड़ी-बड़ी हिरणी जैसी आँखें। सुंदरता के सारे 

मायने पर खरी उतरती सुधा। अपने स्वभाव में भी चंचल तितली सी खुशमिजाज लड़की थी। 
उसके ठीक विपरीत थी उसकी मधु दीदी सांवला रंग घुंघराले बाल और तुनक मिजाज स्वभाव हर बात को दिल में रख कर बदला लेने जैसी प्रवृत्ति थी। सुधा थी कि अपनी मधु दीदी पर जान निछावर करती थी। 
मधु दीदी को उसके रंग-रूप से कष्ट  तो शुरू से ही था। पर वक्त जब ब्याह का आया और हर कोई उसके लिए न बताकर रिश्ता सुधा के लिये बताने लगा तो उसकी इर्ष्या और बढ़ने लगी थी। किस्मत से एक अच्छा रिश्ता मिला और मधु का विवाह हो गया। मधु अब बहुत खुश थी क्योंकि उसका विवाह एक बहुत ही संपन्न घर में हुआ था। वक्त बीता और मधु के पाँव भारी हुए। जब यह बात उसके मायके पहुँची तब सबसे ज्यादा खुश सुधा ही हुई। फागुन माह लग चुका था मधु की ससुराल से सुधा को होली खेलने का बुलावा आया तो सुधा बहुत खुश हुई। मधु दीदी की ससुराल जाने के लिए पिता से जिद करने लगी। जब लाड़ली बिटिया की जिद पर पिता ने हाँ कर दी तब माँ बोली भी थी-"सुधा को मत भेजो। एक तो जवान बिटिया ऊपर से त्यौहार वह भी होली का न जाने क्यों मुझे ठीक न लग रहा"। क्या ठीक  न लग रहा अम्मा, होली तो त्यौहार ही जीजा-साली का है। हम तो जायेंगे मधु दीदी के यहां होली खेलने"। अपनी लाड़ भरी बातों से अम्मा को मनाकर वह मधु दीदी की ससुराल जाने की तैयारी करने लगी कि तभी अम्मा ने गहनों की अलमारी खोल उसे एक चेन पहनने को देते हुए कहा-"लो इसे पहन लो त्यौहार में बहन की ससुराल नंगे गले जाओगी तो लोग क्या कहेंगे"?
तभी गहनों के बीच रखी चमकती सोने की मोहर देख वह बोली-"अम्मा, ये भी चेन में डाल दो  न इसे हम पहनेंगें।"न बिटिया न,ये तो मधु को पसंद है। जब उसका बच्चा होगा तब हमने उसे देने का वादा किया है। ये न पहन बिटिया उसे अच्छा नहीं लगेगा"।
सुधा ने अम्मा के हाथ से मोहर लेते हुए कहा-"जब दीदी के बच्चा होगा तब दे देना। तब तक हम इसे पहन कर जीजा जी  पर जरा रौब तो झाड़ लें"। खिलखिलाते हुए वह उस सोने के टुकड़े को पहनकर मधु दीदी की ससुराल होली खेलने क्या गई कि उसकी जिंदगी ही विष हो गई। ससुराल में सब उसे देख जितना खुश हुए मधु उतना ही जल-भुन गई। सुधा मेहमान थी और पहली बार आई थी। सब  सुधा को ही पूछ रहे थे। मधु की तरफ लोगों का ध्यान थोड़ा कम क्या हुआ कि वह तो बिफर ही पड़ी और सुधा को एकांत में ले जाकर बोली-" ये तूने क्यों पहनी? यह तो अम्मा ने हमको देने को कहा था"। सुधा ने अपनी मधु दीदी को प्यार से थपकी देते हुए कहा-"हाँ,हाँ जब बच्चा आएगा तब तुम ले लेना"। तभी उसके जीजा जी वहाँ आ गए और बोले-"क्या खुसुर-फुसुर चल चल रहा है दोनों बहनों में"? मधु गुस्सा छुपाते हुए मुस्कुराकर बोली-"ज्यादा मेरी बहन के पीछे न पड़ो"। सुधा ने चुहल करते हुए कहा-"पड़ो जीजा जी होली का माहौल है। होली तो होती ही जीजा-साली की है। क्यों दीदी है न"?
उसके अल्लहड़पन को देखकर उसके जीजा ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेर दिया। यह सब मधु के बर्दाश्त के बाहर हो गया। बहन के प्रति बचपन से भरी ईर्ष्या  और मोहर के प्रति लालच ने विकराल रूप धर लिया। उसने रंग वाले दिन सुधा को धोखे से शराब पिला दी और नशे की हालत में उसे पीछे के कमरे में बंद कर दिया। खुद रंग का मजा लेने लगी। पर वक्त को तो कुछ और ही मंजूर था। अपनी साली को रंग खेलते न पाकर उसे खोजते हुए उसके जीजा जी उस कमरे तक पहुँच गये। नशे में मदमस्त हो रही सुधा बेकाबू हुई जा रही थी, भंग का रंग जीजा जी पर भी अच्छा खासा चढ़ा हुआ था। वह उसके रूप में ऐसा खो गए कि नशे ने रिश्तों की सीमा ही पार कर दी। घर  की नौकरानी ने ये खबर मधु को दी तो होली के सारे रंग स्याह हो गये। वह पूरे घर के साथ उस कमरे में जा पहुँची। गुस्से में उसने सुधा और अपने पति के संबंधों के चिथड़े उड़ा दिये। बदहवास सुधा को उसी हालत में घर से निकाल 
दिया। पति तो पुरूष था उसका कुसूर का पलड़ा हल्का कर दिया गया। सुधा एक तो स़्त्री वह भी पराए घर की ऊपर से नशे की हालत में कहाँ क्षम्य था उसका कसूर? मधु दीदी ने अपने घर के पट उसी क्षण उसके लिये बंद कर दिये। सुधा निर्लज्जता का दाग दामन पर लेकर कहां जाती। उस ढलते दिन के धुंधलके में भटकती हुई वह जा पहुँची औघड़ साधुओं की एक टोली में। रिश्तों की जो डोर उससे टूटी थी। उसका जाल बिछाने वाली उसकी अपनी ही बहन थी। यह बात उसे कहाँ पता था? वह तो सारा दोष अपने नशे को दे खुद को ही कोस रही थी। यही वजह थी उसने खुद को बस्ती से दूर औघड़ सन्यासियों के साथ दर-दर का राही बना दिया और खुद को शराब का आदी। औघड़ की दीक्षा देने वाले उसके गुरू ने ही उससे कहा था कि शमशान में रहकर वह देवी की उपासना करे तब ही उसे अपने किए अपराध से निजात इस जीवन में मिल जाएगी नही तो रिश्ते कलंकित करने वाला न जाने कितने जन्मों तक इसका दंड भोगते रहते हैं। वह नशे से थर-थर काँप रही थी कि किशोर उसकी कुटिया तक आ पहुंचा और बोला-"आपने कोई अपराध नहीं किया मेरी अम्मा की ईर्ष्या ने आपको अपराधी बनाया। मेरे पिता ने मेरी अम्मा को कभी माफ नहीं किया और वह घर में रहते होते हुए भी सन्यासी का जीवन जीते हैं। मेरे पिता ने मुझे आप से आशीर्वाद लेने को कहा है। वह जो दूर गेरूए वस्त्र में खड़े सन्यासी हैं वह मेरे पिता है"। यह सब सुन सन्यासिनी सुधा की दहकती अंगारों सी आँखों से जलती हुई अश्रु धारा का सैलाब फूट पड़ा। उसने वहाँ रखे अपने त्रिशूल को अपनी छाती में उतारते हुए कहा-"रिश्तों के रंग को बदरंग करने की मेरी सजा आज पूरी हुई"। स्याहा हो चुकी सुधा के इर्द-गिर्द लहू की रक्तिम धारा फूट पड़ी। वातावरण और भी भयावह हो गया।

ज्योत्सना सिंह
गोमती नगर लखनऊ   

 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:17 PM

Manoj Sharma

             अपनी बात
किसी भी सभ्यता एवं समाज का मूल आधार उसकी साँस्कृतिक एवं परंपरागत पहचान होती है। कोई भी सामाज़िक व्यवस्था अपने इसी आधार को सहेज कर ही आधुनिक परिवेश को आत्मसात करने की मनोवृत्ति रखती है, यदि यह मनोवृत्ति सशक्त है तो वह ऐसे समाज एवं सभ्यता के अस्तित्व को अक्षुण्य रखती है अन्यथा उसकी अपनी पहचान खोने की असहज स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं जब आक्रान्ताओं ने अपने शासित क्षेत्रों के विस्तार हेतु स्वार्थो पर आधारित आक्रमण करके भौगोलिक आधिपत्य तो स्थापित किया ही अपितु अधिकृत क्षेत्र की साँस्कृतिक एवं परंपरागत पहचान विलुप्त करने के प्रयास भी किये। कालाँतर में उस समाज की साँस्कृतिक शक्ति से व्युतपन्न ऊर्जा ने ही ऐसे आक्रन्ताओं को पराजित किया और अपनी मूल पहचान बनाये रखी। हमारा भारतीय समाज भी इसका ज्वलंत उदाहरण है। लम्बी पराधीनता के बाद भी हमने अपनी परंपराएँ एवं साँस्कृतिक पहचान बनाये रखी है।

और Close एक प्रयास है ऐसी साँस्कृतिक एवं परंपरागत ऊर्जा के आवाह्न का, अपनी सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करने का, इस पत्रिका के माध्यम से सुस्थापित साहित्य जगत के मार्गदर्शन में नयी साहित्यिक पौध को पुष्पित एवं पल्लवित होने का एक सशक्त मंच उपलब्ध कराता है। निश्चित रूप से ऐसे प्रयास पहले से भी विभिन्न मंचो एवं संगठनो के द्वारा किये जाते रहे हैं, परन्तु जनपद-हरदोई से साहित्यिक डिज़िटलीकरण का यह प्रयास कुछ अलग हट कर तो है ही, इस पत्रिका का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि आज की आधुनिक एवं व्यस्त जीवन शैली में विभिन्न माध्यमों से हमारी सामज़िक संस्कृति एवं परंपराओं को पहले से अधिक गंभीर आक्रमणों का सामना करना पड़ रहा है जो चाहे हमारी वर्तमान शैक्षिक व्यवस्था हो या मोबाइल,टी0वी0,या फिल्में इन सभी कारणों का बड़ा गंभीर प्रभाव  हमारी साँस्कृतिक पहचान पर पड़ा है। हमारी सामज़िक ही नहीं पारिवरिक संरचनाएं भी प्रभावित हुयी है, पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी को हमारी परंपराएँ हस्तान्तरित न हो पाना-नयी पीढ़ी में संस्कारों के अभाव में अपनी स्थापित परंपराओं से विमुख होते जाना, कहीं न कहीं हमारी मूल पहचान के विस्मृत होते जाने का गंभीर कारण बनता जा रहा है,इस आसन्न परिस्थिति को प्रतिरोधित करना ही ‘‘अविरलधारा’’ का मूल उद्देश्य है ताकि हमारे समाज की साँस्कृतिक एवं परंपरागत पहचान अक्षुण्य रहे और हम नयी पीढ़ी को अपने मूल की पहचान करा सके। इसलिए हम सम्पूर्ण साहित्यिक जगत से आवाह्न करते हैं कि अपने आस्तित्व की रक्षा करने हेतु अपने अनुज एवं युवा साहित्कारों की अंतर्निहित सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करने के उद्देश्य से प्रेरित इस ‘‘अविरलधारा’’ मंच से जुड़े भी-सहभागी भी बने एवं इस महायज्ञ को प्रखरता प्रदान करें।

                                    मनोज शर्मा ‘मनु’

 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:20 PM

Manoj Sharma

          अभिव्यक्ति  एवं ग्राह्यिता
         प्राणी मात्र वो चाहे मानव हो या अन्य जीव, सभी को ईश्वर प्रदत्त एक गुण प्राप्त है जो उसे विशिष्ट प्रकार से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने एवं दूसरे जीव द्वारा व्यक्त की गयी भावनाओं को समझने की शक्ति स्वतः प्राप्त कराता है। मानव को सभी प्राणियों में सर्वोच्चता के चलते उसने अपनी भावनाओं एवं इच्छाओं की अभिव्यक्ति के साधन भी आविष्कृत किये, वो चाहे बोले गये शब्द हों--भाव भंगिमाएं हो-स्वरों के उतार-चढ़ाव हो या लेखन हो। विश्व के किसी क्षेत्र विशेष में अभिव्यक्ति का यह साधन अलग-अलग रूपों में विकसित होता रहा और इस प्रकार  व्यक्त की गयी अभिव्यक्तियों की ग्राह्यता भी स्थापित होती गयी। भारतीय भाषाओं में क्षेत्रीय विविधताओं के बाद भी हर क्षेत्र में लेखन विधा अपनी मौलिकता के साथ  विकसित होती गयी। भारतीय संस्कृति के विकास के साथ-साथ,लेखन की विविध विधाओं का सृजन भी होता गया जैसे-गद्य,काव्य,नाटक,गीत,गजल,रेखाचित्र आदि। इसी क्रम में संगीत को भी प्राणिमात्र ने प्रमुखता से अपनाया। भारतीय संगीत में भी विविधताओं का वर्गीकरण सुस्पष्ट रूप से स्थापित हुआ। संगीत वह सशक्त माध्यम है जो अपने प्रस्तुतीकरण मात्र से भोर या साँझ,सुख और दुःख, वात्सल्य एवं भक्ति जैसे भाव की अभिव्यक्ति सुस्पष्टता से कर सकता है एवं उसकी ग्राह्यता संवेदनशीलता के साथ प्राणिमात्र की भावनाओं को उद्वेलित कर सकती है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम की सफलता के पीछे भी अभिव्यक्ति के रूप में ऐसे नारे, ऐसे संबोधन, ऐसे वीर रस एवं देशभक्ति के गीत हुऐ हैं जिन्होंने पूरे भारत में अपनी ग्राह्यता सिद्ध करके एक जन आँदोलन को स्वतंत्रता की दहलीज पर सफलता पूर्वक पहुँचा दिया।

और Close       आज का युग अपनी आधुनिकता एवं विकास की गति को संजोये तीव्र गतिशीलता से हमें अभिव्यक्ति के नये-नये संसाधन उपलव्ध करा रहा है, जैसे टी0वी0,रेडियो से चलते-चलते वाट्सएप, एक्स, ए0आई0 चैट जी0पी0टी0 आदि। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में अभिव्यक्तियों का विस्तार एवं त्वरित संप्रेषण,तो है परन्तु मौलिकता नहीं हैं। संवेदनशीलता, स्थिर सोच और वैचारिक मंथन से ही हम तमाम माध्यमों का सहारा अवश्य ले परन्तु मौलिक सृजन की आवश्यकता फिर भी होगी।
           यदि आप याद करें तो बचपन की कुछ बाल पत्रिकाएं-चंदामामा,लोटपोट,चंपक,पराग,नंदन,गुड़िया,दीवाना आदि बच्चों के जीवन एवं आनन्द का अभिन्न अंग रही है। इसी प्रकार धर्मयुग, कादम्बिनी जैसी स्तरीय पत्रिकाओं की ग्राह्यता भी विस्तृत रही हैं। लेकिन कालाँतर में बदलते तकनीकी परिवेश में शतैः शनैः इनकी प्रासंगिकता विलुप्त होती गयी। 
     इन बदली हुयी पास्थितियों में यह अपरिहार्य है कि हम तकनीक का सहारा अवश्य ले परन्तु यह देखते चले कि हमारी अभिव्यक्ति की ग्राह्यता स्थापित रहे जो पाठक को जिज्ञासु बनाये रखे। नीचे लिखी कुछ पंक्तियाँ किसे याद नहीं-
बुंदेले हर बोलों से हमने सुनी कहानी थी...........
मेरा रंग दे बसंती चोला..........
उठो लाल अब आँखे खोलो..........
लाला जी ने केला खाया..........
टिवंकल-टिवंकल लिटिल स्टार.........
जाँनी-जाँनी यस पापा..........
क्या ये पंक्तियाँ भुलाये भूली जा सकती है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अति विपरीत परिस्थितियों में ऐसी रचना रची (श्री राम चरित 
मानस) जिसने संबंधित धर्मावलंबियों को जाग्रत किया,इस धर्मग्रंथ को अनुकरणीय बनाया और 

ग्राह्यता की स्थिति ऐसी है कि वर्तमान काल में भी ‘‘मानस पाठ’’ की सर्वोच्च प्राथमिकता आम जन मानस में उत्कृष्टता  के साथ स्थापित है। धर्मानुयापियों को अपने जीवन यापन एवं अपने कृतित्व के प्रेरणा तत्व धर्मग्रंथों में निहित उक्तियाँ एवं संदेश ही है।
संदेश यह है कि कृतित्व ऐसा हो जो साधारण मानव भी आपके द्वारा प्रस्तुत अभिव्यक्ति को सार्थक रूप से ग्रहण करें एवं उसकी ग्राह्यिता इस स्तर की हो जो हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर बन जाय।

                                                     मनोज शर्मा ‘मनु’

 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:25 PM

Shriya Sharma

 अविरल धारा का प्रख्यापन
25 जनवरी 2024 को साहित्यिक हिंदी पत्रिका अविरल धारा का औपचारिक प्रख्यापन हरदोई जिले में हुआ। इसका प्रख्यापन 90.4 एफएम रेडियो जागो के अध्यक्ष श्री अभय शंकर गौड़ जी के द्वारा किया गया। इस अवसर पर साहित्यकार एवं पूर्व प्रधान आर्य वानप्रस्थ आश्रम ज्वालापुर हरिद्वार श्री डी के पांडेय विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे एवं जिले के स्थापित व नवोदित साहित्यकारों और कवियों में सर्व श्री बी एस पांडेय जी, मनीष मिश्र जी, गीता गुप्ता जी, मीतू मिश्रा जी, पल्लवी मिश्रा जी की ओजपूर्ण उपस्थिति भी रही। कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित नवोदित रचनाकार रूबी ने नीलम नदी के पुनरोत्थान व हरदोई जिले पर आधारित स्वरचित कविताओं का पाठ कर सभी का ध्यान आकर्षित किया।

और Close धारा एक विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका है। इस पत्रिका का उद्देश्य  हिंदी साहित्य को आधुनिक परिवेश  में उत्तरोत्तर प्रगति एवं गौरवशाली इतिहास को गरिमामयी स्तर पर पहुंचने हेतु, सूक्ष्म ही सही, अभिदान करना है। यह डिज़िटल पत्रिका पूर्णतः गैर राजनीतिक परिवेश में रह कर, ये प्रयास करेगी की हिंदी साहित्य के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करे और उन सभी को एक मंच मिले जो हिंदी साहित्य की धारा की अविरलता चाहते हैं।
अविरल धारा की संपादक ज्योत्सना सिंह ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए बताया कि डिज़िटल युग में यह हिंदी साहित्यिक क्षेत्र के डिज़िटलीकरण का अनूठा प्रयास है जो अविरल धारा के रूप में प्रवाहित होता रहेगा। पत्रिका के समाचार प्रभाग की कार्यकारी मैंने ने पत्रिका के स्वरूप और उद्देश्य की विस्तार से जानकारी दी एवं मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि तथा समस्त साहित्यकारों एवं कवियों को शाल ओढ़ाकर एवं स्मृति चिन्ह भेंटकर स्वागत किया।
पोर्टल के क्रिएटर सुंदरम पांडेय ने पत्रिका के तकनीकी पहलुओं को बताया। एनजीओ सचिव, दीपा शर्मा,ने कार्यक्रम के अंत में अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
अविरल धारा पत्रिका लॉनन्चिंग के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकारों,कवियों व साहित्यकारों ने अपने विचार व अनुभव साझा किये और पत्रिका की सफलता की कामना करते हुए अपने मूल्यवान मार्गदर्शन का आश्वासन भी दिया।

                                                                                                       श्रीया शर्मा
परिचय
नाम-श्रीया शर्मा
पुत्री-श्री मनोज कुमार शर्मा
पता-1-ए,लक्ष्मीपुरवा हरदोई
शिक्षा-परास्नातक पत्रकारिता
एवं माँस-काँम
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142 दिन पहले 10-May-2024 3:29 PM

Shriya Sharma

                 वंदे भारत ट्रेन-18

                 मध्यमदूरी की आधुनिक रेल परियोजना

और Close भारत एक्सेप्रेस, जिसे पहले ट्रेन-18 के नाम से जाना जाता था, एक अर्ध हाई स्पीड बिना इंजन की ट्रेन है। यह पूरी तरह से भारत में डिजाइन और निर्मित पहली ट्रेन है। भारत सरकार की मेक इन इंडिया पहल के तहत सवारी डिब्बा कारखाना चेन्नैं (आई0सी0एफ0) द्वारा इसे 18 महीने की अवधि में अभिकल्पित एवं तैयार किया गया है।

परियोजना संवंधी महत्वपूर्ण विवरण-

(i)पहली यूनिट की निर्माण लागत रू100 करोड़, जो कि योरोप से आयातित समान यूनिट की लागत से 50% सस्ती है।

(ii)पहली वंदे भारत ट्रेन माह फरवरी 2019 में वाराणसी से नयी दिल्ली के बीच चली।

(iii)मार्च 2024 तक देष के 45 राष्ट्रव्यापी मागों को,जो कि 24 राज्यों एवं 256 जिलों को कवर करतें हैं,मे संचालित।

(iv)ट्रेन की अधिकतम स्पीड 160 किमी0/घंटा एवं औसत स्पीड 96.37 किमी0/घंटा है।

(v)यह एक मध्यम दूरी की सुपरफास्ट एक्सप्रेस सेवा है जो 800 किमी0 दूरी तक के शहरों को जोड़ती है।

(vi)वर्तमान सेवाओं के साथ यात्रा करने में 8.8 घंटे का समय लगता है।

(vii)ट्रेन के दोनों छोर पर एक ड्राइवर कोच है, आँतरिक रूप से ट्रेन में 1128 यात्रियों के बैठने की क्षमता के साथ 16 यात्री कारें है। मध्य में दो प्रथम श्रेणी के डिब्बे हैं जिनमें से प्रत्येक में 52 यात्री बैठ सकते हैं।

 वंदे भारत ट्रेन का अगला अवतार ‘‘वंदे भारत मेट्रो ट्रेन’’-

(i) इस श्रेणी की ट्रेनें100 से 200 किमी० की दूरी हेतु चलायी जायेंगी, जिसके एक ओर बड़ा शहर तथा दूसरी ओर उपनगर होगा।

(ii)इन ट्रेनों में 4 से लेकर 16 बोगियाँ तक जरूरत के अनुसार होगीं। शुरूआत 12 कोचों से होगी।

(iii)कोच के अंदर बैठने की व्यवस्था मेट्रो ट्रेनों की भाँति होगी।

(iv)इन ट्रेनों को अनारक्षित श्रेणी में रखा गया है।

(v)भविष्य में मुँबई लोकल ट्रेनों के अलावा दिल्ली, चेन्ने और कोलकाता में भी इन ट्रेनों को प्रतिस्थापित किया जाना संभावित है।

(vi)ये ट्रेनें एक रूट पर दिन में 4 से 5 बार चलेंगी।

(vii)दैनिक यात्री इन ए०सी० ट्रेनों में रैपिड शटल जैसा एवं कम समय की यात्रा का विश्व स्तरीय अनुभव लें पायेंगे।

(viii)50 ट्रेने तैयार हैं, संचालन जुलाई 2024 से प्रारम्भ होने की संभावना है।

भारतीय रेल की इस महत्वाकाँक्षी परियोजना के नेता और स्वतंत्र रेल सलाहकार एवं सेवानिवृत्त महाप्रवंधक भारतीय रेलवे श्री सुधाँशु मणि (आई.ए.एस.) से ‘‘अविरल धारा’’की समाचार प्रभाग की प्रभारी श्रीया शर्मा ने परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर बात चीत की, जिसके महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत है-

प्र०- ट्रेन -18 परियोजना अर्थात वंदे भारत ट्रेन को देश एवं यात्रियों की सुविधा के द्रष्टिगत आप क्या सोचते है?

उ०-यह परियोजना भारतीय रेल की सीमित समय में प्राप्त एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। भारतीय इंजीनियरिंग का अनूठा उदाहरण होने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत की ओर ले जाने वाला कदम है। वंदे भारत ट्रेन यात्रियों को यात्रा का बहुत अच्छा अनुभव दे रही हैं।

प्र०-इस परियोजना की सफलता से देशवासी किस प्रकार की संतुष्टि महसूस कर सकते हैं?

उ०-हमने सिद्ध किया है कि यदि उचित वातावरण मिले तो भारतीय इंजीनियर आयात से बहुत कम कीमत पर अवधारणा से लेकर डिजाइन करने तक विश्व स्तरीय उत्पाद विकसित कर सकते हैं। कम लागत और आत्म निर्भरता के द्रष्टिगत देश को अर्थिक सुदृढ़ता मिलने से देश और देशवासियों का हित होना निश्चित है।

प्र०-परियोजना में लगी टीम का सीमित समय में कार्य निष्पादन उत्कृष्टता के साथ कर पाने के लिए आप कुछ कहना चाहेंगें?

उ०-आई०सी०एफ० के तकनीकी कर्मियों के बीच कुछ सार्थक करने का उत्साह था। परियोजना में लगी पूरी टीम ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को जिस तन्मयता  एवं व्यावसयिक द्रष्टिकोण से किया, वह प्रशंसनीय है। कई बार हम किसी कार्य की प्रारंभिक  असफलताओं से उस कार्य से विमुख होने लगते है या प्रयास करना कम कर देते हैं, परंतु इस परियोजना की सफलता, स्वयं सिद्ध करती है कि किस मनोयोग से कार्य किया गया है।

प्र०-परियोजना के क्रियान्वयन में कैसी बाधाएं आंयी और इसके लिए क्या उपाय किये गये?

उ०-मुख्य बाधाओं में से एक डिजाइन की थी। इस हेतु आई०सी०एफ० की टीमों एवं विक्रेताओं को खुद के लिए चुनौती देने के लिए उत्सहित करना था। यह कार्य बगैर  किसी प्रौद्योगिकी प्रदाता कंपनी के सहयोग के डिजाइन सलाहकार का उपयोग आई०सी०एफ० द्वारा  किया गया ससमय सामिग्री आपूर्ति की निर्वाधता सुनिश्चित करना, आवश्यक साफ्टवेयर की तैयारी, 3-डी तकनीक का उपयोग, ये सब इस प्रकार किया गया कि आई०सी०एफ० इस और ऐसी ही समान परियोजनाओं के लिए स्वयं को भविष्य के लिए तैयार कर सके।

प्र०-ऐसी हाईस्पीड ट्रेनों में सुरक्षा के उपाय क्या किये गये?

उ०-सुरक्षा हमारी प्रमुख चिंता थी और प्रत्येक डिजाइन सुविधा को विशिष्ट मूल्यांकन के माध्यम से चलाया गया था। कोचों में एंटी-क्लाइंविंग फीचर, सेमी-परमानेंट जर्क-फ्री कप्लर्स जो कोचों को पलटने से रोकते हैं, आधुनिक बोगियाँ, स्वचालित प्लग दरवाजे, माइक्रोप्रोसेसर-नियंत्रित ब्रेक सिस्टम, सीलबंद गैंगवे, टॉक-बैक सुविधा, वीडियो निगरानी जैसी कई नई सुविधाएं थी। चेतावानी प्रणाली आदि।

प्र०-परियोजना के ससमय क्रियान्वयन एवं अपनी भूमिका पर भी प्रकाश डालें?

उ०-इस परियोजना को पूर्ण करने के लिए वर्ष 2018 निर्धारित था जिसके चलते इसे ट्रेन 18 नाम दिया गया। 2018 में परियोजना स्वीकृति के 21 महीने वाद मेरा रिटायर मेंट होने से पहले आई०सी०एफ० प्रोटोटाइप तैयार कर लेगा, ऐसे कठिन लक्ष्य की प्राप्ति में अनेक वाधाएं रही जैसे सीमित अवधि एवं डिजाइन हेतु निज संसाधनों के उपयोग की बाध्यता,विक्रेताओं से समन्वय। अतः आई०सी०एफ० की टीम को इस तनावपूर्ण माहौल में अराजक काम काज से बचने, कार्य की विफलता के डर को दूर करने हेतु मेरे स्वर से सतत् निर्णय लिये गये। टीम को उत्साह से भरे रखना ही इस परियोजना की सफलता की कहानी है। इस महती कार्य हेतु आई०सी०एफ० और उनकी टीम को बहुत धन्यवाद।

प्र०-वंदे भारत ट्रेन के महत्वपूर्ण फीचर्स क्या हैं?

उ०-एंटी क्लाइम्बिंग फीचर, सेमी परमानेंट जर्क फ्री कपलर्स (कोचों को पलटने से बचाते हैं), आधुनिक बोगियाँ,स्वचालित प्लग दरवाजे, माइक्रोप्रोसेसर नियंत्रित ब्रेक सिस्टम, सीलबंद गैंग वे, टाँक बैक सुविधा, वीडियों निगरानी, चेतावनी प्रणाली, जैसे फीचर्स ट्रेन के डिजाइन में शामिल हैं। यात्रियों की सुविधा के तौर पर वैक्यूम निकासी प्रणाली,स्पर्श मुत्त एफ के साथ आधुनिक शौचालय हैं। यह ट्रेन बिना किसी लोकोमोटिव के एक ट्रेन सेट है, बोर्ड के नीचे पावरिंग और होटल लोड उपकरण लगे होते है। पर्याप्त जगह यात्रियों को बैठने और  सुविधाओं के लिए होती है।

                                                                                                                                        श्रीया शर्मा



142 दिन पहले 10-May-2024 3:33 PM

Manoj Kumar Srivastava

         कोरी कल्पना 
एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ बैठा था,

और Close शान-ओ-शौकत में खुद पे ऐंठा था,
सभी आपस में बाते करते बैठते,उठते,खाते,
और यूं ही हुड़दगं--मचाते।
सब अपने को सुपीरियर सिद्ध करने,लगे थे,
आधे खा पीकर बहकने लगे थे, 
अचानक मेरे मन में शरारत सूझी,
मैंने बैठे हुये लोगो से एक पहेली पूँछी ,
कि सामने बंधे घोड़े को कौन हँसा सकता है,
अपने जीवन को कौन मुसीबत में फँसा सकता है,
महफिल में सन्नाटा छाया,
और इसके लिए कोई आगे न आया।
थोड़ी देर बाद एक सज्जन आगे आये और बोले,
यहाँ पर कोई मूर्ख नहीं है, पर क्या आप कर सकते हो,
मैंने कहा हाँ-हाँ क्यों नहीं, सच नहीं तो झूँठ सही,
मैं उसे हसाऊँगा और आप सबको दिखाऊंगा,
मेरी बात सुनकर वहाँ एक बार फिर सन्नाटा छाया,
मैं क्या करना चाहता हूँ किसी की कुछ समझ में न आया,
सभी ने आपस में मिलकर मशवरा किया,
और फिर एक फैसला किया,
वही सज्जन आगे आये,
और एक शर्त अपने मुँह पर लाये। शर्त में अगर मैं जीता तो, 
 ऐसी ही पार्टी दो बार खाने को मिलेगी,   
 और अगर मैं हार गया तो, 
 मुझे अकेले ही सबको एक पार्टी देनी होगी, 
 मैं अपनी बात पर अड़ गया, 
 लेकिन सोच मे पड़ गया, 
 करूंगा ये सब कैसे, 
 कहाँ से लाऊंगा इतने पैसे।                          
एकाएक एक उपाय सूझा, 
मैंने घोड़े के कान मे कुछ फूंका,        
पहले तो उसने मुंह से कुछ थूका, 
फिर शायद उसका मौन टूटा,         
और वह खिलखिलाकर हँसने लगा, लोग सोचने लगे ये करिश्मा कैसे हो गया,                     
हमारा सबका भाग्य क्या एकदम सो गया।
मैं जीता था मेरे तो हौसले थे ही बुलंद,
इसलिये एक दूसरी शर्त लगा दी तुरन्त,
क्या तुम लोग इस घोड़े को रूला सकते हो,
किसी ने पीछे से कहा बेवकूफ क्या बकते हो,
लोगो को मौंका  मिला पैसा वापस करने का।
मैंने सोचा क्या जरूरत थी ऐसा कहने की,
मैंने फिर भी हामी भर ली,
लोगों ने शर्त दुगनी कर दी,
किसी ने कहा कौन घोड़े को रुला सकता है,
महज इत्तेफाक से वह सिर्फ हँस सकता है।
मैं फिर गया उसके पास,
इस बार मन में कम था विश्वास,
मैंने एक बार फिर की कोशिश और सुनाने लगा दास्तान,
उसने सोचा इसको झेलने से तो रोना है आसान,
और अगले ही पल वह रोने लगा,
मैं भी आश्चर्यचकित सा होने लगा।
हम एक बार फिर ऐसे ही जीत गये,
सारे महफिल के लोग हमसे खीज गये,
सभी अन्दर से टूटने लगे और हमसे पूँछने लगे,
कैसे किया है,ये कमाल,
घोड़े को कैसे कर दिया निहाल,
मैं अपने को हिटलर समझने लगा,
कैसे किया ये बकने लगा,
मैंने उन लोगों को बताया अब आप को भी बताऊंगा,
और कविता के अगले प्रकरण में घोड़े को नचाऊंगा।
मैंने जब घोड़े को हंसाया तो उसके कान में बताया,
मैं तुमसे रेस करूंगा और जीत जाऊंगा,
घोड़े के मुँह पर हँसी आयी क्यों मजाक करता है, मेरे साथ तुम क्या पी.टी. ऊषा भी नहीं दौड़ सकती है,
बाद में जब रुलाने की शर्त लगाई,
तब मैंने अक्ल दौड़ाई,
लेकिन उससे पहले मैं आप सबको देता हूँ दुहाई,
जिसकी समझ में यह व्यंग्य आयेगा,
सिर्फ वही ताली बजायेगा।
जो समझेगा अक्लमंद और बचा हुआ मूर्ख कहलायेगा,
‘‘देख घोड़े मैं तुझे रुलाने आया हूँ तुझे रोना पड़ेगा,
नहीं तो मेरे इस बेसुरे मुँह से कविता सुनेगा ’’।
                                   
                                                     
                                     मनोज कुमार श्रीवास्तव 
          परिचय
नाम-मनोज कुमार श्रीवास्तव
पिता स्व०- रामशंकर श्रीवास्तव
निवासी-बहरा सौदागर पूर्वी,हरदोई
शिक्षा-सिविल इंजीनियर
जन्म तिथि-20/05/1969
मो०न०-9450577770
रूचि-काव्य सृजन    

 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:37 PM

Denesh Kumar shalabh

                    ‘‘आँसू’’
उदासीनता,

और Close /> उपेक्षा,
तुमसे मिले ये तीन प्रश्न जब भी हल करने बैठा हूँ
उत्तर में,
आसूँ ही निकले हैं।।
                                          दिनेश कुमार ‘‘शलभ’’
परिचय
श्री डी० के० पाण्डेय जी, सिविल डिफेन्स विभाग में सहायक उपनियंत्रक पद से सेवानिवृत्ति के बाद आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर, हरिद्वार में प्रधान के रूप में अनेकों बार निर्वाचित हुए हैं एवं वर्तमान में भी इसी आश्रम में सेवा कार्य कर रहे हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने आश्रम में हिन्दी एवं संस्कृत के काव्य सम्मेलनों का आयोजन किया है। हिन्दी साहित्य में रूचि बाल्यावस्था से ही रही है एवं 14 वर्ष की उम्र में पहली रचना लिखी। इन पर अपने पिता स्व० श्री राम शर्मा जी का प्रभाव रहा जो कि हिन्दी प्रवक्ता थे। शासकीय सेवा काल में भी इन्होंने अनवरत रूप से साहित्य मंचो को साझा किया हैं। 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:42 PM

Denesh Kumar shalabh

                     जिन्दगी धुआँ हैं
      अरमानों का फूँस,भावों का ढेर,

और Close     दुखों की सामिग्री,
      करूणा का तरल और ज्वलन पदार्थ,
      अर्थात् एक चिता का मार्मिक प्रारूप।
                 जिसे सामाजिक नियमों की,
                 दीपशलाका से अग्नि दे दी गई,
                 तनिक क्षणों में ही भावों।
      अरमानों और कल्पनाओं की चिता धधक उठी
      लपटों के घेरे में जल-जल कर राख हुई,
      तभी अचानक उसी राख के ढेर से धुयें,
                 के गोल-गोल गुबार उठे,
                 लेकिन वह धुआँ नहीं,
                 जिन्दगी के अश्रु थे। 
      तरल नहीं शुष्क थे, 
      इसीलिए ढेर पर नही ऊपर उठ,
     रहे थे जिनमें एक मूक ध्वनि थी,
      जिन्दगी जुआँ है।।


                                                  दिनेश कुमार ‘‘शलभ’’

 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:45 PM

Ruby

        नीलम-एक जीवन धारा
  नीलम नदी को है, 

और Close  हम सबको बचाना, 
   यह सन्देश है, 
   जन-जन तक पहुँचाना।
   जल ही है जीवन,
   हाँ जल ही है अमृत,
   इस अमृत को यूँ ना बहाना,
   इस जल को है हम सभी को बचाना।
   यह सन्देश है,
   जन-जन तक पहुँचाना,
   शौंच करो न नदी किनारे,
   न बदलों इन्हें नदियों से नाले।
   नदियों को दूषित  होने से बचाना,
   यह संदेश है,जन-जन तक पहुँचाना, 
   जल को ना बर्बाद करो तुम। 
   वरना तरसोगे एक-एक बूँद को तुम, 
   जल ही तो है जिन्दगानी हमारी, 
   इसें बचाना वरना होगी परेशानी। 
   हमको न ये बात भुलाना,
   यह संदेश है,
   जन-जन तक पहुँचाना। 

                      रूबी 
परिचय-
नाम-रूबी 
पिता-श्री रामराज
कक्षा-12
विद्यालय-ज्ञान स्थली इण्टर कालेज
पता-बैठापुर
पोस्ट-सेमरिया,जिला हरदोई

 



142 दिन पहले 10-May-2024 3:49 PM