logo

Home › About

Promotion Section

  • अविरल धारा डिजिटल पात्रिका हिन्दी साहित्य के स्थापित मनीषियों का साभार सहयोग प्राप्त करके साहित्य सेवा के इस हवन कुंड में उनकी दिग्दर्शक आहुतियों से उपकृत होकर अपनी इस साहित्य यात्रा को प्रारम्भ करेगी।
  • यह कि डिजिटल पत्रिका पूर्णतया गैर राजनैतिक परिवेश में रहकर, यह प्रयास करेगी कि पात्रिका की सामग्री किसी भी दशा में गैर सामाजिक न होने पाये, किसी वर्ग जाति धर्म एवं क्षेत्र के प्रति अनादर न व्यक्त करे, रूढ़िवादिता एवं अंध विश्वास को बढ़ावा न दे।
  • यह डिजिटल पात्रिका विशुद्ध रूप से हिन्दी साहित्य की सेवा हेतु तत्पर रहकर, समग्र समाज के हिन्दी प्रेमियों के मन में हिन्दी के प्रति सुरूचि पूर्ण रूप से उन्हें हिन्दी साहित्य के प्रति जिज्ञासु बनाये एवं उनके मध्य सुषुप्त प्रतिभाओं को जाग्रत कर हिन्दी साहित्य की सेवा में तत्पर होने की प्रेरणा दें। इस कार्य में “अविरल धारा“ का मंच उन्हे सर्वसुलभ रहेगा।
  • नवागंतुक साहित्यकारों के परिमार्जन एवं उनकी सुषुप्त प्रतिभाओं को निखारने हेतु अविरल धारा मंच पर ऐसी प्रतिभाओं के दिग्दर्शन एवं उनके संकोच के निराकरण हेतु साहित्य जगत के स्थापित वरिष्ठ साहित्यकारों एवं उनकी रचनाओं के परिचय के साथ-साथ पूर्वकालों के साहित्यिक संघर्षो एवं वर्तमान चुनौतियों के परिवेश में परिचर्चाओं एवं विभिन्न स्तरों पर साहित्य सम्मेलनों का आनलाइन आयोजन किया जायेगा।
  • इस डिजिटल पात्रिका की साहित्यिक यात्रा का प्रारम्भ होने के पश्चात् सीमित संसाधनों के कारण सभवतः साहित्य सृजन के सापेक्ष उचित परिश्रामिक दिया जाना सम्भव न हो पाये, परन्तु उत्तरोत्तर इस प्रकार की व्यवस्था प्रबन्धन द्वारा अवश्य कर ली जायेगी।
  • इस डिजिटल पात्रिका में चिन्हांकित स्तभ्ांं के माध्यम से आपत्तिजनक एवं वैमनस्य विषयों को छोड़कर कोई सीमा रेखा निर्धारित नही है अस्तु निम्नांकित विषयों को वरीयता दिये जाने का प्रयास अवश्य होगा -
    • पात्रिका में प्रकाशित/प्रसारित होने वाली समस्त सामग्री राष्ट्रीय हितो को प्रभावित न करें।
    • समकालीन साहित्यिक समाज में घट रही स्वस्थ सृजनात्मक गति विधियों से जुड़ात एवं स्थापित हो रही सकारात्मक परम्पराओं पर ध्यानाकर्षण।
    • गैर राजनैतिक परिवेश में समकालीन राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में सकारात्मक सामग्री का समावेश।
    • अपने स्थानीय परिवेश में व्याप्त कतिपय ऐसी सामाजिक एवं परिवारिक स्थितियों को रेखांकित किया जाना जिनमें सुधारात्मक उपाय किये जा सकें।ऐसी रचानाओं में नकारात्मकता एवं आलोचना का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    • आज संवेदनशीलता एवं साहिष्णुता की कमी हमारे समाज में विस्तृत एवं विकृत रूप से लेती जा रही है, इस स्थिति पर साहित्यिक प्रहार सकरात्मकता को बढ़ावा देने में सहयोगी हो सकता है।
    • आज के युवा मन निराशा से ओत प्रोत है जिसके चलते उन्हे अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण काल में उचित दिरदर्शन की आवश्यकता है, साहित्य इस महत्वपूर्ण कार्य में उन्हे निराशा से आशा की दीपशिखा का दर्शन करा सकता है।
    • हमारे समाज की कतिपय परम्पराएं जो परिवारोन्मुख एवं समाजोपयोगी रही है, साथ ही मानव मात्र के व्यक्तिगत विकास में सहायक रही है। इनका विलुप्तीकरण भी हमारी सामाजिक-पारिवारिक-विकृतियों की जननी है। अतः साहित्य की तर्जनी सही दिशा को रेखांकित कर सकती है।
    • बच्चो का मन कोमल होता है, उनको यदि बचपन से साहित्य की लोरी का रसास्वादन लालित्य एवं दुलारने की युत्ति से कराया जाये तो सम्भवतः हम साहित्य की नई पीढ़ी को बचपन से रोपित कर सकते है। आज की शिक्षा व्यवस्था एवं अति की व्यस्तता शायद बचपन पर बहुत भारी पड़ रही है और बच्चों के अभिभावको को इस दृष्टिकोण से प्रेरित किया जाना अति आवश्यक है।
    • आज की शिक्षा व्यवस्था में अनेक विकृतियों का समावेश हुआ, इसमें सुधारात्मक उपायों हेतु साहित्य के माध्यम से शासन-प्रशासन, शैक्षणिक संस्थानों, शिक्षको को प्रेरित किया जा सकता है।
    • वर्तमान में सृजित होने वाले साहित्य गीत, संगीत, काव्य, भाषा सम्बन्धी तमाम सकारात्मक प्रयासों के बावजूद कुछ ऐसा भी सृजित हो रहा है जो शायद हमारी परम्पराओं संवेदनाओं को आहत करने के साथ ही हिन्दी साहित्य एवं भाषा को अपूर्णनीय क्षति पहुँचा रहा है। ऐसे कुप्रयासों पर साहित्यिक रूप से सकारात्मक आलोचनात्मक प्रहार करना भी हिन्दी साहित्य की सेवा ही माना जाना चाहिए।