धर्म
धर्म का मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। धर्म मानव मात्र का सबसे संवेदनशील नियंत्रण कर्ता है, जो उसकी जीवन पद्धति, रहन-सहन एवं प्रत्येक गतिविधि पर अपना प्रभाव छोड़ता है। किसी भी धर्म विशेष की अपनी विशिष्टियां हो सकती हैं, परंतु सभी में समान रूप से एक तत्व अवश्य पाया जाता है, जो मानव मात्र का भौतिक गतिविधियों के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक पक्ष पर भी विचार करने हेतु बाध्य करे। प्रेम और सदभाव, सामाज़िक परिवारिक एवं व्यत्तिगत संस्कारो को धर्मानुरूप विकसित करे। धर्म ही वह अंकुश है जो मानव को आध्यात्मिक एवं संस्कारिक सोच के साथ गैर मानवीय एवं असामाजिक गतिविधियों से स्वतः विमुख होने की प्रेरणा देता है। हमारे आराध्य एवं धर्म गुरुओं के उपदेश निरंतर धर्मविशेष के अनुयायियों को मानवीय स्वाभावगत दोषों यथा- लोभ,लालच,राग,द्वेष,असहिष्णुता, क्रोध,अहंकार से इतर उच्चतम मानव मूल्यों को स्थापित करने में सहायक होते हैं। क्या हम दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते हुए,मानवीय गुणों को आत्मसात करते हुए अपने परस्पर सदभावनापूर्ण आचरण को प्रतिष्ठित करेगें?
दीपा शर्मा
227 दिन पहले 10-May-2024 4:09 PM