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Deepa Sharma

                              धर्म

धर्म का मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। धर्म मानव मात्र का सबसे संवेदनशील नियंत्रण कर्ता है, जो उसकी जीवन पद्धति, रहन-सहन एवं प्रत्येक गतिविधि पर अपना प्रभाव छोड़ता है। किसी भी धर्म विशेष की अपनी विशिष्टियां हो सकती हैं, परंतु सभी में समान रूप से एक तत्व अवश्य पाया जाता है, जो मानव मात्र का भौतिक गतिविधियों के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक पक्ष पर भी विचार करने हेतु बाध्य करे। प्रेम और सदभाव, सामाज़िक परिवारिक एवं व्यत्तिगत संस्कारो को धर्मानुरूप विकसित करे। धर्म ही वह अंकुश है जो मानव को आध्यात्मिक एवं संस्कारिक सोच के साथ गैर मानवीय एवं असामाजिक गतिविधियों से स्वतः विमुख होने की प्रेरणा देता है। हमारे आराध्य एवं धर्म गुरुओं के उपदेश निरंतर धर्मविशेष के अनुयायियों को मानवीय स्वाभावगत दोषों यथा- लोभ,लालच,राग,द्वेष,असहिष्णुता, क्रोध,अहंकार से इतर उच्चतम मानव मूल्यों को स्थापित करने में सहायक होते हैं। क्या हम दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते हुए,मानवीय गुणों को आत्मसात करते हुए अपने परस्पर सदभावनापूर्ण आचरण को प्रतिष्ठित करेगें?

और Close धर्मों की मूल भावना में ऐसा ही है,फिर भी यदि धार्मिक आधार पर परस्पर विद्धेष या द्धंद का भयावह इतिहास भी है, ऐसा ही वर्तमान में भी है, तो क्या हम यह सोच लें कि धर्म स्त्रोत से प्रवाहित ज्ञान या प्रेरणा दोषपूर्ण है? नहीं ऐसा तो नहीं है! शायद यह धर्म को सच्चे अर्थों में न समझ पाने का परिणाम हो सकता है या तत्कालीन शासन व्यवस्था की स्वार्थी या विस्तारवादी सोच हो सकती है, अन्यथा क्या कारण है कि एक ही प्रकार के धर्मावलम्बियों के मध्य भी संघर्ष स्थिति देखने में आती है। हमें सोचना होगा कि हम अपनी धर्मिक, सामाजिक एवं वंशानुगत पहचान को स्थापित रखते हुए भी अन्य धार्मिक व्यक्तियों व समूहों से सौंह्यर्दपूर्ण सम्बंध बनाये रखे। एक दूसरे की रीतियों-नीतियों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए प्रत्येक धर्म के सुस्पष्ट मानवीय पक्षों को आत्मसात करें। शायद आज के परिप्रेक्ष्य में यह ज्यादा आवश्यक भी है। हमें भारत में ऐसा धर्मनिरपेक्ष परिवेश सौभाग्य से प्राप्त हुआ है जिसमें हमें इन नातों को सर्वोपरि रखते हुए अपने आचरण को सुपरिभाषित एवं व्यवस्थित रखना चाहिये।

                      दीपा शर्मा

 



227 दिन पहले 10-May-2024 4:09 PM